उल्लेखनीय है कि प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वास्तु जैसे शास्त्र का प्रतिपादन किया, उनके पास आधुनिक उपकरण नहीं थे, लेकिन अपनी कुशाग्र बुद्धि और अन्तः प्रज्ञा शक्ति द्वारा उन्होंने प्रकृति के रहस्यों को करीब से समझा और वास्तुशास्त्र के उपयोगी व्यवहारिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया।
‘‘क्षिति जल पावक गगन समीरा’’ पंचतत्वों को अपने घर के अधीन कहें कि अपने घर को पंचतत्वों के अधीन निर्मित करना ही वास्तु-शास्त्र का सिद्धान्त है। आज के परिवेश में अधिकांश लोगों के पास बहुत बड़ा भूखण्ड नहीं होता फिर भी मेरी कोशिश रहेगी कि आप चिन्हित् संरचना को न अपना सके तो कोई बात नहीं किन्तु दोषपूर्ण गृह निर्मित न हो, घर की सम्पूर्ण वास्तुशास्त्र का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि शुभ मुहूर्त एवं व्यक्ति की शुभ दशा, ग्रह-गोचर में किया हुआ गृह निर्माण सदैव शुभ फलदायी होता है, किन्तु यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति की काकिणी गणना भी अनुकूल हो, शल्कोद्वार से आरम्भ होकर गृह-प्रवेश तक गृह निर्माण कार्य अनवरत चलते रहना चाहिये। यदि किसी कारणवश तीन दिन तक निर्माण कार्य रोकना पड़े तो शुभ मुर्हूत में ही पुनः निर्माण कार्य प्रारम्भ हो।
गृह की गुणात्मक सुन्दरता के लिये उचित एवं चिन्हित रंगों के प्रयोग के लिये नवग्रह वास्तु का ही अनुसरण हो, जिसके लिये यह जरुरी हो कि आपका वास्तुशास्त्री ज्योतिषी भी हो ताकि आप सही रंगों का चयन भी कर सके.... आदि आदि।भूमि का वास्तु उस पर बनने ले भवन के वास्तु के समान ही महत्त्वपूर्ण है। भूमि के वास्तु के लिए हमें उस भूखण्ड के लेवल, कोण, आकार तथा क्षेत्रफल के बारे में जानकारी लेकर वास्तु के दृष्टिकोण से परखना चाहिए। वास्तुशास्त्र में माना गया है कि भवन निर्माण से पूर्व उचित भूखंड या फिर कहें जमीन का चयन कर उसका भूमि परीक्षण किया जाना चाहिए।
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वास्तुशास्त्र में माना गया है कि दुकान या प्लॉट खरीदने से पहले उसके चारों ओर की बनावट, वातावरण और मूलभूत ढांचे की समीक्षा कर लेनी चाहिए। भवन निर्माण से पूर्व उचित भूखंड का चयन कर उसका भूमि परीक्षण किया जाना चाहिए। ऐसा करने से भवन निर्माण के उपरांत वहां निवास करने वाले सदस्य अनेक प्रकार की परेशानियों से बच सकते हैं। जिस जगह वास्तु कार्य होना है, उस जगह के वातावरण के साथ पानी की व्यवस्था का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
जहां आप निर्माण करना चाहते हैं उसके आस-पास के स्थान पर गंदा नाला व वर्कशॉप आदि नहीं होना चाहिए।
किसी भी गली या आवास स्थल की कतार में अंतिम मकान कभी नहीं खरीदना चाहिए। एकदम सड़क के किनारे बना हुआ मकान भी शुभ नहीं माना गया है।
तीन कोणों से युक्त तिकोनी भूमि कभी नहीं खरीदनी चाहिए। एक तरफ अधिक चौड़ा एवं एक तरफ कम चौड़ा प्लॉट भी अशुभ होता है,अर्थात अनियमित आकार के भूखंड वास्तु सम्मत नहीं माने गए हैं ।
हवा, पानी, प्रकाश, चौड़ी गली देखकर ही भूखंड का चयन करना अच्छा रहता है एवं ढलान व डूब वाले स्थान में मकान नहीं बनाना चाहिए।
प्लॉट पर जहां घर का मुख्य द्वार बनाना हो उसके सामने कोई बिजली का खम्भा,बड़ा पेड़ या गड्ढा के सामने, नहीं होना चाहिए ऐसा होना कष्टकारक माना गया है।
दो बड़े मकानों के बीच में एक छोटा मकान हो, तो छोटा मकान रहने वालों के लिए हानिकारक होता है।इसी प्रकार मकान के आसपास मंदिर, मस्जिद, मीनार या नाला शुभ नहीं है।
वास्तुशास्त्र में माना गया है कि भवन निर्माण से पूर्व उचित भूखंड का चयन कर उसका भूमि परीक्षण किया जाना चाहिए। ऐसा करने से भवन निर्माण के उपरांत वहां निवास करने वाले सदस्य अनेक प्रकार की परेशानियों से बच सकते हैं। मिट्टी परीक्षण संबंधी कुछ सिद्धांत और विधियां वास्तु में बताई गई हैं, जो वैज्ञानिक आधार पर भी एकदम सटीक उतरती हैं। नियमानुसार यदि मिट्टी उपयुक्त हो तभी भवन निर्माण करना चाहिए।
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